भगवान सूर्य देव जिन्हें आदित्य देव भी कहा जाता है तथा जिन के प्रकाश से इस संपूर्ण सृष्टि में जीवन चक्र चलता है।
जिन की किरणों से ही इस धरती पर प्राण का संचार होता है ऐसी कृपा के भंडार भगवान सूर्य देव की अपार कृपा के लिए सूर्य षष्ठि अथवा Chhath Puja का त्योहार भगवान सूर्य देव को पूर्ण रूप से समर्पित है।
छठ पूजा के इस महापर्व में भगवान सूर्य के साथ-साथ देवी षष्ठि की भी उपासना की जाती है।
आखिर षष्ठि देवी कौन है मार्कंडेय पुराण के अनुसार इस सृष्टि की देवी ने अपने आप को छह भागों में विभाजित किया है।
इनके छठे अंश को सर्वश्रेष्ठ मातृ देवी के रूप में जाना जाता है छोटे अंशुल प्रकट होने के कारण यह षष्ठि देवी कहलाती हैं।
इन्हें विष्णु माया तथा बालबा भी कहा जाता है व्रत का पालन करने वाली इन षष्ठि देवी को ब्रह्मदेव की मानस पुत्री तथा स्वामी कार्तिकेय की पत्नी होने का सौभाग्य प्राप्त है।
कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष की छठी तिथि को मनाया जाने वाला पर्व छठ भगवान सूर्य को समर्पित है।
सालों साल से मनाया जाने वाला छठ 4 दिनों तक चलता है और इसे काफी कठिन पर्वों में से एक माना जाता है।
छठ पर्व कैसे शुरू हुआ इसे लेकर अलग-अलग मान्यताएं हैं।
पुराण में छठ पूजा के पीछे की कहानी राजा प्रियम वक्त को लेकर है।
कहते हैं राजा प्रियमवत के पास कोई संतान नहीं था पुत्र इच्छा के कारण देवी षष्ठी का वृत किया।
राजा को पुत्र की प्राप्ति हुई तभी से लोग छठ पूजा करते है। वही मान्यता है कि Chhath Puja महाभारत काल से ही शुरू हुआ था।
इसकी शुरुआत पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य की पूजा करके की थी कि भगवान सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बने थे।
छठ पर्व को हठयोग भी माना जाता है इस कठिन पर्व की शुरुआत को लेकर कई कहानियों में से एक कहानी यह भी प्रचलित है।
जब पांडवों ने अपना सारा राजपाट जुए में हार गए थे तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा था इस व्रत से उनकी मनोकामनाएं पूरी हुई।
पांडवो को अपना राजपाट वापस मिल गया था। लोक परंपरा के मुताबिक सूर्य देव और छठ मैया का संबंध भाई बहन का है।
इसीलिए छठ के मौके पर सूर्य की उपासना काफी फलदाई मानी जाती है।
Chhath Puja को लेकर कहा जाता है कि इसका उल्लेख रामायण में भी है लंका विजय के बाद रामराज्य की स्थापना के दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को भगवान राम और माता सीता ने छठ व्रत किया था।
सूर्य देव की उपासना की थी छठ का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष इसकी सादगी पवित्रता और लोगप्रियता है।
बांस से बने सुप में प्रसाद और मधुर लोकगीतों से सबके जीवन में भरपूर मिठास भरने का काम करता है यह पर्व।
छठ पर्व किस प्रकार मनाया जाता है छठ पूजा चार दिन का उत्सव है।
इसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से कार्तिक शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को समाप्त हो जाती है।
Chhath Puja व्रत करने वाले 36 घंटे तक लगातार व्रत करते हैं।
पहला दिन नहाए खाए का होता है घर को साफ सुथरा और पवित्र बनाया जाता है।
इसके बाद छठवर्ती स्नान कर शाकाहारी भोजन ग्रहण कर व्रत की शुरुआत करते हैं।
घर के बाकी सब लोग जो व्रत किया रहता है उनके खाने के बाद ही खाते हैं।
भोजन के रूप में चने की दाल कद्दू और चावल खाया जाता है।
दूसरे दिन खरना और लोहंडा व्रत करने वाले लोग दिन भर का उपवास रखने के बाद शाम को भोजन करते हैं इसे खरना कहा जाता है।
खरना का प्रसाद आसपास के सभी लोगों में बांटा भी जाता है। गुड में चावल बनाया जाता है जिसे खीर कहा जाता है और धी में का पराठा बनाया जाता है ।
तीसरा दिन में छठ प्रसाद बनाया जाता है और उस में नमक या चीनी का प्रयोग नहीं किया जाता है।
छठ पूजा का प्रसाद खुद अपने हाथों से घर में ही बनाया जाता है और पूरी स्वच्छता के साथ प्रसाद बनाने के लिए आटा और चावल का प्रयोग किया जाता है।
इसके अलावा कई प्रकार के फल और सब्जियों का भी उपयोग होता है।
इस पूजा में प्रयोग होने वाले बर्तन भी या तो बस के होते हैं या मिट्टी के शाम के समय बांस की सुप में फल जो प्रसाद बनाया है वह सजाया जाता है।
व्रत करने वाले के साथ अगल-बगल के लोग भी सूर्य को अर्घ देने के लिए घाट की ओर चले जाते हैं।
सभी छठ वर्ती किसी नदी या तालाब के पास बैठकर सूर्य देव की उपासना करते हैं।
और सूर्य देव को जल और दूध से अर्घ दिया जाता है साथ ही छठ मैया कि प्रसाद का पूजा की जाती है।
चौथा दिन सुबह का अर्घ्य कार्तिक शुक्ल सप्तमी की सुबह उगते हुए सूरज को अर्घ्य दिया जाता है।
उसी जगह सभी इकट्ठा होते हैं जहां शाम को पूजा हुई थी। और वही पर कच्चे दूध के शरबत से व्रत खोलते हैं।
इसी प्रकार छठ व्रत किया जाता है पूरे विधि विधान से और पूरी स्वच्छता निर्मल भावना से इस छठ का पर्व किया जाता है।
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