अगर आप सेनापति बापट जी के बारे में नहीं जानते हैं, तो कुछ नहीं जानते कि हमारा देश कैसे आजाद हुआ!

पांडुरंग बापट कौन थे!Senapati bapat

Senapati bapat

स्वतंत्रता सेनानी पांडुरंग महादेव बापट (12 November 1880 – 28 November 1967), हमारे देश भारत के स्वतंत्रता संग्राम के महान स्वतंत्रता सेनानी थे! लोग उन्हें सेनापति बापट के नाम से जानते हैं। स्वतंत्रता सेनानी क्रांतिकारी पांडुरंग महादेव बापट के बारे में साने गुरूजी ने कहा था :- ‘सेनापति बापट में मुझे छत्रपति “शिवाजी महाराज तथा समर्थ गुरु रामदास तथा संत गुरु तुकाराम की त्रिमूर्ति दिखायी पड़ती है। साने गुरू जी पांडुरंग महादेव बापट जी को लोकमान्य बल गंगाधर तिलक, महात्मा गाँधी तथा विनायक दामोदर सावरकर का अपूर्ण और मधुर और मजबूत मिश्रण भी करते थे! सेनापति बापट को भक्ति, ज्ञान व सेवा की सुलभ गायत्री की संज्ञा देते थे।

पांडुरंग महादेव बापट

Senapati bapat

जन्म

12 नवम्बर 1880पारनेर, ब्रिटिश भारत

मृत्यु

28 नवम्बर 1967 (उम्र 87)बॉम्बे, महाराष्ट्र, भारत

राष्ट्रीयता

भारतीय

शिक्षा प्राप्त की

डेक्कन कॉलेज, पुणे विश्वविद्यालय

महान स्वतंत्रता सेनानी पांडुरंग बापट की जीवन की कहानी!

पांडुरंग बापट का जन्म 12 नवम्बर,1880 को महादेव व गंगाबाई के घर पारनेर. गांव में महाराष्ट्र में हुआ था! पांडुरंग बापट जी ने पारनेर में प्राथमिक शिक्षा के बाद बारह वर्ष की अवस्था में न्यू इंग्लिश हाईस्कूल- पुणे में शिक्षा ग्रहण की! पुणे में फैले प्लेग महामारी के कारण बापट जी को पारनेर वापस लौटना पड़ा! गृहस्थ जीवन में उनका प्रवेश 18 वर्ष की आयु में हुआ! अपनी मौसी के घर अहमदनगर में मैटिक की परीक्षा उत्तीर्ण कर आपने 5वाँ (5th rank) स्थान तथा जगन्नाथ सेठ की छात्रवृत्ति प्राप्त की!

नियम के उल्लंघन करने पर छात्रावास से बाहर!

कचेहरी में दस्तावेज-नवीस का कार्य उन्होंने अपने इसी दौरान किया! उस समय उन्होंने 12 रू प्रति माह की छात्रवृत्ति अपने संस्कृत विषय में हासिल की! तथा उच्च शिक्षा हेतु 3 जनवरी 1900 को 20 वर्ष की उम्र में डेक्कन कॉलेज, पूणे में दाखिला लेकर! छात्रावास में टोपी लगाकर बाहर जाने के नियम का असावधानी पूर्वक उल्लंघन करने के कारण उनको 6 महीने छात्रावास से बाहर रहने का दण्ड़ मिला!

मैकेनिकल इंजीनियर की पढ़ाई!

इस अवसर पर सतारा के नाना साहब मुतालिक ने बापट को अपने कमरे में रख कर सहारा दिया! अपनी उच्च शिक्षा को जारी रखने के उद्देश्य से स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद बापट जी ने बम्बई पहुँचकर स्कूल में अस्थायी अध्यापन का कार्य प्रारम्भ कर दिए! सौभाग्य से बापट को मंगलदास नाथूभाई जी की छात्रवृत्ति मिल गई! अब बापट मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने स्काटलैण्ड पहुँच गये। उन्होंने यहां के कवीन्स रायफल क्लब में आपने निशानेबाजी करनी सीख ली!

श्यामजी कृष्ण वर्मा ने सेनापति बापट जी के बारे में क्या कहा?

भारतीय क्रांतिकारियों के प्रेरणाश्रोत श्री श्यामजी कृष्ण वर्मा, जिन्होंने लन्दन में क्रान्तिकारियों के लिए इण्डिया हाउस की स्थापना की थी, तथा इण्डियन सोशलाजिस्ट नामक अखबार से क्रांतिकारियों का प्रचार-प्रसार भी किया था, उस महान विभूति श्यामजी कृष्ण वर्मा से यहीं पर पांडुरंग महादेव बापट जी की मुलाकात हुई थी!

ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन भारत की परिस्थिति विषय शेफर्ड सभागृह में निबन्ध-वाचन के अवसर पर श्यामजी कृष्ण वर्मा द्वारा उपलब्ध करायी गयी! आप पंजी सामग्री के आधार पर उन्होंने अपना भाषण दिया! तथा उन्होंने अपना निबन्ध छपा! तत्काल मुम्बई विद्यापीठ सिफारिश पर बापट की छात्रवृत्ति समाप्त हो गई! अपनी मातृभूमि की दशा को बखान करने की कीमत चुकायी बापट जी ने!

100 साल बाद इतिहास रचा!

अब बापट ने एक क्रान्ति की शिक्षा ग्रहण करना प्रारम्भ कर दिया! इण्डिया हाउस में रहने के दौरान बापट, विनायक दामोदर सावरकर के सम्पर्क में आये। इनको पेरिस बम कौशल सीखने भेजा गया! अपनी विद्वता का इस्तेमाल उन्होंने अपने देश की सेवा व लेखन में किया! दादा भाई नौरोजी की अध्यक्षता में होने वाले 1906 के कांग्रेस अधिवेशन में वॉट शैल अवसर पर कांग्रेस डू तथा 1907 में सौ वर्ष बाद का भारत अपना कालजयी लेख था!

सेनापति बापट जी भारत वापस आए!

मजदूरों , मेहनतकशों तथा आम जनों को एकता के सूत्र में बांघने तथा क्रांति की ज्वाला को फैलाने के उद्देश्य से श्यामजी कृष्ण वर्मा व सावरकर की सलाह के आधार पर बापट जी भारत वापस आये! शीव बन्दरगाह पर उतरने के पश्चात् धुले-भुसावल होते हुए कलकत्ता के हेमचन्द्र दास के घर माणिकतल्ला में पहुँचे! यहां कई क्रांतिकारियों के साथ उनकी बैठक हुई! इन्ही क्रान्तिकारियों में से एक क्रान्तिकारी बम परीक्षण में दो माह बाद गिरफतार हो गया, जो मुखबिर बन गया!

सेनापति बापट के पकड़े जाने पर!

सेनापति बापट जी की भी तलाश प्रारम्भ हो गई! साढ़े चार वर्ष बाद इन्दौर में पुलिस के हाथों बापट जी भी गिरफ्तार हो गए! इसी बीच मुखबिर बने नरेन्द्र गोस्वामी को क्रान्तिकारी चारू चन्द्र गुहा ने मार गिराया फलतःबापट पर कोई अभियोग सिद्ध नहीं हो सका! पांच हजार की जमानत पर छूटकर बापट पारनेर घर आकर सामाजिक सेवा, स्वच्छता जागरूकता, महारों के बच्चों की शिक्षा, तथा धार्मिक प्रवचन आदि कार्यों में जुट गये!

उनकी पत्नी उन्हें 4 अगस्त 1920 को छोड़कर स्वर्ग चली गई।

पुलिस व गुप्तचर बापट के पीछे पड़े रहे! 1 नवम्बर,1914 को एक पुत्र की प्राप्ति के पश्चात् नामकरण के अवसर पर, उन्होंने प्रथम भोजन हरिजनों को कराने का साहसिक कार्य किया था! अप्रैल 1915 में पूना के वासु काका जोशी के चित्रमय जगत नामक अखबार में फिर 5 माह बाद तिलक के मराठी पत्र में बापट ने कार्य किया! पापा जी पूणे में भी सामाजिक कार्य व रास्ते की साफ-सफाई करते रहते थे! बापट ने मराठा पत्र छोड़ने के बाद पराड़कर के लोक-संग्रह दैनिक में विदेश राजनीति पर लेखन करने के साथ-साथ डॉ॰ श्रीधर व्यंकटेश केलकर के ज्ञानकोश कार्यालय में भी काम किया! और उनकी पत्नी उन्हें 4 अगस्त 1920 को छोड़कर स्वर्ग चली गई!

इस समय बापट 2अगस्त,1920 से चल रही श्रमिक मेहतरों की मुम्बई में चल रही हड़ताल का नेतृत्व कर रहे थे! झाडू-कामगार मित्रमण्डल का गठन कर सन्देश नामक समाचार पत्र में विवरण छपवाया! मानवता की शिक्षा देते हुए, मुम्बई वासियों को जागृत करने हेतु, गले में पट्टी लटका कर भजन करते हुए 1सितम्बर,1920 को चैपाटी पहुंचे ! उनकी यह हड़ताल सफल हुई!

सेनापती बापट की प्रतिमा

यह सब कुछ होने के बाद भी!

इसके पश्चात् अण्ड़मान में कालेपानी की सजा भोग रहे क्रान्तिकारियों की मुक्ति के लिए डॉ॰नारायण दामोदर सावरकर के साथ मिलकर उन्होंने अपना हस्ताक्षर अभियान चलवाया ! घर-घर भ्रमण किया, लेख लिखे तथा सभाएं आयोजित की। इसके साथ ही उन्होंने राजबन्दी मुक्ता मण्डल की भी स्थापना की!

कालेपानी की कठोर यातना

कालेपानी की कठोर यातना से इन्द्रभूषण सेन आत्महत्या कर चुके थे, तथा उल्लासकर दत्त पागल हो गये थे! महाराष्ट में सह्याद्रि पर्वत की विभिन्न चोटियों पर बाँध बाँधने की योजना टाटा कम्पनी ने की! मुलशी के निकट मुला व निला नदियों के संगम पर प्रस्तावित बाँध से 54 गाँव और खेती डूब रही थी! विनायक राव भुस्कुटे ने इस के विरोध में सत्याग्रह चला रखा था! 1 मई 1922 को दूसरे सत्याग्रह की शुरूआत होते ही सेनापति बापट जी को गिरफतार कर अंग्रेजों ने उन्हें 6 माह के लिए येरवड़ा जेल भेज दिया गया!

अब गप्प मारने के दिन खत्म हुए, बम मारने के दिन आ गये हैं।

छूटने के बाद बापट मुलशी के विषय में घूम-घूम कर कविता पाठ करते, प्रचार फेरियां निकलवाते! नागपुर में बेलगाँव तक भ्रमण किया बापट ने। आप वापस जी को मालूम चल चुका था कि अंग्रेज ऐसे मानने वाले नहीं हैं! अब बापट सभाओं में कहते,-अब गप्प मारने के दिन खत्म हुए, बम मारने के दिन आ गये हैं!

मुलशी प्रकरण में 23 अक्टूबर 1923 को बापट तीसरी बार गिरफतार हो गये! रिहाई के बाद रेल पटरी पर गाड़ी रोकने के लिए पत्थर बिछाकर, हाथ में तलवार, कमर में हथियार और दूसरे हाथ में पिस्तौल लेकर बापट धोती की काँख बाँधे अपने 5 साथियों के साथ खड़े थे! इस रेल रोको आन्दोलन में गिरफतारी के बाद 7 वर्ष तक सिंध प्रांत की हैदराबाद जेल में बापट अकेले कैद रहे! मुलसी आन्दोलन से ही बापट को सेनापति का खिताब मिला! रिहाई के बाद 28 जून 1931को महाराष्ट कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गये!

7वर्ष के काले पानी तथा 3वर्ष की दूसरे कारावास में रहने की दूसरी सजा मिली! Senapati bapat

विदेशी बहिष्कार का आन्दोलन चला! अपने भाषणों के कारण बापट फिर जेल पहुँच गये!सिर्फ 5 माह बाद ही गिरफतार हुए बापट ने वकील करने से मना कर दिया! 7वर्ष के काले पानी तथा 3वर्ष की दूसरे कारावास में रहने की दूसरी सजा मिली! जेल में रहने के ही दौरान उनके माता-पिता की मृत्यु हो गई! तथा उनके लिए बाहर कांग्रेस ने सार्वजनिक हड़ताल व सभायें की! येरवड़ा जेल में बन्द गाँधी जी के अनशन के समर्थन में सेनापति बापट जी ने जेल में ही अनशन किया!

सूत कातने, कविता लिखने, साफ-सफाई करने में वे जेल में अपना समय बिताते! अनशन करने में स्वास्थ्य खराब होने पर उन्हें बेलगांव भेज दिया गया! 23 जुलाई 1937 को रिहा कर दिये गये सेनापति बापट के रिहाई के अवसर पर स्वागत हेतु बहुत विशाल सभा रखी गई!

1977 में भारत सरकार द्वारा जारी पांडुरंग महादेव बापट की स्मृति में जारी एक डाक टिकट !

सुभाष चन्द्र बोस के द्वारा फारवर्ड ब्लाक की स्थापना करने पर बापट को महाराष्ट शाखा का अध्यक्ष बनाया गया! द्वितीय विश्व युद्ध में भारत को शामिल करने का किया – फारवर्ड ब्लाक ने। भाषण दिये गये। कोल्हापुर रियासत में धारा 144 लागू थी! जिसके कारण वहाँ भाषण देने के कारण आपको गिरफतार की कराड़ लाकर छोड़ दिया गया! उन्होंने फिर कोल्हापुर में सभा कर विचार रखे! 5 अप्रैल 1940 को मुम्बई स्टेशन पर आपको गिरफतार कर कल्याण छोड़ा गया तथा मुम्बई प्रवेश पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया।

उनकी पुत्री का भी देहान्त :-Senapati bapat

नजरबन्दी के बावजूद उन्होंने चैपाटी में पुलिस कमिशनर स्मिथ की मौजूदगी में उर्दू में भाषण दिया! इस अवसर पर अंग्रेज का पुतला तथा यूनियन जैक भी जलाया गया! बापट को गिरफतार कर नासिक जेल में रखा गया! यहां पर बापट का पुत्र वामनराव भी द्वितीय विश्व युद्ध के विरोध की सजा में बन्द थे! 20 मई 1944 को उनकी पुत्री का भी देहान्त हो गया ! तथा सात माह की नातिन की जिम्मेदारी भी उन पर आ गई।

शपथ का अक्षरशःपालन

नवम्बर, 1944 में विद्यार्थी परिषद का आयोजन हुआ! चन्द्रपुर, अकोला की सभाओं के दौरान सेनापति बापट अमरावती की सभा के पहले ही गिरफतार हो गये! एक वर्ष की सजा फिर हो गई! 1946 में दुर्भिक्ष पड़ा! इस अवसर पर सेनापति बापट जी ने मजदूरों का साथ दिया तथा सहायता निधि जमा करके मजदूरों की मदद भी की ! मातृभूमि की सेवा करने की जो शपथ 1902 में छात्र जीवन में बापट जी ने ली थी! उस शपथ का अक्षरशःपालन किया! देश के लिए पूरा जीवन व्यतीत कर देने वाले इस सेनापति जी काअधिकांश जीवन का समय जेल में ही बीता।

संयुक्त महाराष्ट की स्थापना

Senapati bapat

संयुक्त महाराष्ट की स्थापना व गोवा मुक्ति आन्दोलन के योद्धा सेनापति बापट जी सदैव हमारे बीच प्रेरणा बन करके रहेंगे। तथा आजादी के दिन 15 अगस्त,1947 को बापट ने पुणे शहर में तिरंगा फहराने का गौरवशील अवसर हासिल किया। सेनापति बापट की देहावसान 28 नवम्बर,1967 को हुआ था। पुणे–मुम्बई में सेनापति बापट के सम्मान में एक प्रसिद्ध सड़क का नामकरण भी किया गया है।

Senapati bapat and bihar ki beti

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