Andha की भक्ति-अंधे की भक्ति से नवरात्रि में माँ दुर्गा जब हुई प्रासन!

एक गांव में एक मूर्तिकार और उसकी पत्नी रहते थे ।वो मूर्तिकार बचपन से ही Andha था फिर भी वो माता की मूर्ति बहुत ही सुन्दर बनाता था। और वो माता रानी का भक्त भी था वो माता को मन की आंखों से देखता और मिट्टी को आकर देने लगता और देखते ही देखते मां दुर्गा की सुंदर सी मूर्ति बन कर त्यार हो जाती ।

मूर्तिकार की तरह उसकी पत्नी भी मां दुर्गा की भक्त थी । पति Andha और आमदनी भी बहुत कम बस एक छोटा सा घर था और मूर्तियां बेचकर उनका घर चलता इतना ही नहीं शादी के कई साल हो गए फिर भी उनके कोई संतान भी नहीं थी ।फिर भी पत्नी ने कभी शिकायत नहीं की ना अपने पति से ना ही अपनी माॅं दुर्गा से ।

दोनों बस इतना ही कहते जो हमारे भाग्य में लिखा है उससे ज्यादा नहीं मिलेगा । तो बस दोनों माता की भक्ति करते और अपना अच्छा बुरा सब माता पे छोड़ दिया ।

नवरात्र के पर्व की तयारी दोनों लगे थे ,मूर्तिकार माता की सुंदर – सुंदर मूर्तिया बना और सजा रहा था। और मूर्तिकार की पत्नी घर में पूजा की तयारी कर रही थी ।

दोनों ही नवों दिन व्रत रखते हुए भी अपना काम भी समय पर पूरा करते थे । सभी लोग Andha मूर्तिकार से ही मूर्ति खरीदते थे ।

नवरात्र के दौरान Andha मूर्तिकार की पत्नी जब पूजा कर रही थी तो अचानक उसे चक्कर आया और वो गिर पड़ी।

मूर्तिकार ने सोचा कि व्रत के वजह से चक्कर आया हैं पत्नी को बैठा कर उसे माॅं का प्रसाद दिया और कहा तुम आराम करो ।पत्नी को बैठे- बैठे नींद लग गई ।

और उसने एक सपना देखा कि वो एक छोटे बच्चे को अपनी गोद में खेला रही है ।

तुरंत उसकी आंख खुली और अपने पति से कहा मैंने अभी सपने में छोटे से बच्चे को खेला या है ।

Andha मूर्तिकार ने कहा ये तो माता का आशीर्वाद है । जय माॅं दुर्गे जय माता दी दोनों ने माॅं दुर्गा को नमस्कार किया ।

नोव महीने बाद एक बेटा हुआ दोनों ने उस बेटे का नाम प्रसाद रखा क्योंकि ये उन दोनों की सच्ची भक्ति का फल था।

प्रसाद अब आठ महीने का हो गया था घुटनों और हाथों के सहारे पूरे घर में घूमने लगता ।

एक दिन प्रसाद की माॅं ने उसे सुला कर अपने घर के काम में लग गई ।

कुछ देर बाद बच्चे की नींद टूटी और उसे अपने घर के बाहर एक गेंद दिखाई दी उसे पकड़ने के लिए चल पड़ा ।

वो जैसे ही इस गेंद के पास जाता वो और दूर चला जाता और प्रसाद और आगे बढ़ता ।

बढ़ते- बढ़ते वो उस मिट्टी में चला गया जिस मिट्टी को उसका पिता अपने पैरो से गूंध रहा था और माता का जाप कर रहा था।

देखते ही देखते वो बच्चा उस मिट्टी में ही मिल गया और मिट्टी बच्चे के खून से पूरी लाल हो चुकी थी।

जब मूर्तिकार की पत्नी अपना काम ख़त्म कर अपने बेटे को दूध पिलाने आई तो उसे प्रसाद कहीं दिखाई नहीं दिया ।

उसने सोचा की कहीं चुप के बैठा होगा और वो भी उसे धुंडने लगी उसे पूरे घर में बच्चा कहीं नहीं दिखाई दिया।

अब वो डर गई और घर के बाहर धूंडने गई तो वहीं पे उसका पति मिट्टी को गूंध रहा था ।

पत्नी ने पति से पूछा क्या हमारा बेटा यहां आया था मूर्तिकार ने कहा नहीं में तो कब से इस मिट्टी को गूंध रहा हूं ।

पत्नी ने मिट्टी को देखा मिट्टी पूरी लाल दिख रही थी वो वहीं पे गिर पड़ी और रोने लगी ,।

मूर्तिकार ने पूछा तुम रो क्यों रही हो कहा है हमारा प्रसाद ? पत्नी ने रोते हुए कहा हमारा बेटा मिट्टी में सन गया । मूर्तिकार भी झटका खाकर गिर पड़ा और रोने लगा कुछ देर बाद मूर्तिकार उठा और उसी मिट्टी से मूर्ति बनाने लगा और माॅं दुर्गा का नाम जपने लगा।

पत्नी ने भी कोई सवाल नहीं किया बस वहीं बैठ कर देखती रही और वो भी माॅं का नाम जपने लगी ।

ये सब देख अब माॅं दुर्गा से रहा ना गया और एक बूढी औरत का रूप धारण कर उन दोनों के पास आकर बोली कैसे माता पिता हो तुम दोनों तुम्हारा बेटा इस मिट्टी में सन गया है और तुम माता की मूर्ति बनाने में लगे हो और माता का नाम जपे जा रहे हो ।

तुम्हे कोई अफसोस नहीं है उस माॅं दुर्गा से पूछोगे नहीं उसने तुम्हारे बच्चे को क्यों छीन लिया।

मूर्तिकार और उसकी पत्नी ने कहा नहीं माई हमे माॅं दुर्गा से कोई शिकायत नहीं है।

जो हुआ वही हमारी किस्मत थी हमारे बेटे का साथ शायद इतना ही था ।

माॅं दुर्गा अपने असली रूप में आ गई और दोनों से कहा ।( में तुम दोनों की परीक्षा ले रही थी तुम दोनों ने अपने जीवन में नजाने कितने कष्ट सहे फिर भी कभी कोई शिकायत नहीं की और आज भी वो स्थिति खड़ी थी जिसे शायद ही कोई सह पता फिर भी तुम दोनों ने मेरा नाम जपना नहीं छोड़ा ) ।

तुम दोनों मेरे सच्चे भक्त हो इसलिए तुम्हारे साथ बुरा ऐसे हो सकता है माॅं ने मूर्तिकार की पत्नी के आचल में उसका बेटा डाल दिया और मूर्तिकार की भी आंखो से दिखाई देने लगा दोनों अपने बेटे को पाकर बहुत ही खुश हुए और माॅं दुर्गा के चरणो में झुक गए।

माॅं ने आशीर्वाद देते हुए कहा तुम्हारी किस्मत में जो लिखा है वो तो में नहीं बदल सकती पर बुरे से बुरे हालत में भी में हमेशा अपने भक्तों के साथ रहूंगी ।

मेरी भक्ति का मतलब ये नहीं कि मूझपे चढ़ावे चढ़ाऔ सारे काम छोड़ कर सिर्फ मेरी पूजा में लगे रहो ।( नहीं ऐसा बिल्कुल नहीं है सच्ची भक्ति वो है जो अपना कर्म अच्छा करे में मंदिरों में नहीं सच्चे मन में रहती हूं )

Jai maa durge happy navratri to all

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