क्या आप नहीं जानना चाहेंगे! स्वामी विवेकानंद की बायोग्राफी!

Biography of swami vivekanand

स्वामी विवेकानंद की बायोग्राफी,..

भारत में जन्मे एक मठ वासी संत एक युवा सन्यासी के रूप में भारत की संस्कृति कि सुगंध विदेशों में बिखेरने वाले ऐसे महापुरुष है स्वामी विवेकानंद! ……….(उठो जागो और अपने लक्ष्य से पूर्व मत रुको)…!

स्वामी विवेकानंद का यह क्रांति वाक्य आज भी युवा जन को प्रेरित करता है……

संपूर्ण विश्व में हिंदू धर्म का महत्व बताने में उनका योगदान बहुत बड़ा रहा है!

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में हुआ….उनके पिता श्री विश्वनाथ दत्त कोलकाता हाईकोर्ट में एक प्रसिद्ध वकील थे!…

उनकी माता श्रीमती भुवनेश्वरी देवी जी धार्मिक विचारों की महिला थी…Biography of swami vivekanand

नरेंद्र के चरित्र में जो भी महान है वह उनकी सुशिक्षित विचारशील माता की शिक्षा का ही परिणाम है….

एक पुस्तकालय से वह रोज किताबें लाते और उसे वापस कर आते…..
1 दिन कर्मचारी ने पूछ लिया किताबें पढ़ने के लिए ले जाते हो या सिर्फ देखने के लिए….

स्वामी विवेकानंद जी बोले पढ़ने के लिए अगर कोई शंका है तो आप कुछ भी पूछ लीजिए….

कर्मचारी ने एक प्रश्न खोला और उसका नंबर बता कर पूछा की बताओ उस पर क्या लिखा है…
विवेकानंद जी ने बिना कुछ देखें इस पृष्ठ का सारा विवरण हूबहू बता दिया….

नरेंद्र की बुद्धि बचपन से ही बड़ी तीव्र थी

नरेंद्र की बुद्धि बचपन से ही बड़ी तीव्र थी और परमात्मा को पाने की लालसा भी बड़ी तीव्र थी….
इसके है तू पहले धर्म समाज में गए किंतु वहां उनके चित् को संतोष नहीं मिला……

वह वेदांत और योग को पश्चिम संस्कृति में प्रचलित करने के लिए अपना महत्वपूर्ण योगदान देना चाहते थे….

रामकृष्ण परमहंस की तारीफ सुनकर नरेंद्र उनसे तर्क करने के उद्देश्य से उनके पास गए! किंतु उनके विचारों से प्रभावित होकर उन्हें गुरु मान लिया…..

परमहंस की कृपा से उन्हें आत्म साक्षात कार हुआ……..

नरेंद्र परमहंस के प्रिय शिष्यों में से सर्वोपरि थे.. 25 वर्ष की उम्र में नरेंद्र गेरुआ वस्त्र धारण कर सन्यास ले लिया और विश्व भ्रमण पर निकल पड़े…..

1893 में वे शिकागो विश्वधर्म परिषद में भारत के प्रतिनिधि बंद कर गए ! किंतु उस समय यूरोप में भारतीयों को हीन दृष्टि से देखते हैं, लेकिन उगते सूरज को कौन रोक पाया है…..

वहां लोगों के विरोध के बावजूद एक प्रोफेसर के प्रयास से स्वामी जी को बोलने का मौका मिला..

.स्वामी जी ने बहनों और भाइयों कह कर श्रोताओं को संबोधित किया…

स्वामी जी के मुख से यह शब्द सुनकर दर्जन ध्वनि से उनका स्वागत किया..

श्रोता उनको मंत्र मुक्त सुनते रहे और निर्धारित समय कब बीत गया पता ही ना चला…

अध्यक्ष की वंश के अनुरोध पर स्वामी जी ने आगे बोलना शुरू किया और 20 मिनट से अधिक बोले…

उन्होंने कहा कि जब हम किसी व्यक्ति या वस्तु को उसकी आत्मा से प्रतिक रखकर प्रेम करते हैं! तो फल आते हमें कष्ट भोगना पड़ता है……

हमारी कोशिश होनी चाहिए कि हम व्यक्ति को उसकी आत्मा से जोड़ कर देखें! या उसे आत्मा स्वरूप मानकर चलें तो फिर हम हर स्थिति में शौक, रोग, कष्ट, द्वेष तथास्त रहेंगे निर्विकार रहेंगे………

स्वामी विवेकानंद 4 वर्ष तक अमेरिका के विभिन्न शहरों में भारतीय अध्यात्म का प्रचार प्रसार करते रहे….

वर्ष 1887 में वे स्वदेश लौट कर आए घर लौटकर उन्होंने देशवासियों का आह्वान किया है!

(नया भारत निकल पड़े मोची की दुकान से भड़भुज के भाड़ से कारखाने से हॉट से बाजार से निकल पड़े झाड़ियों से जंगलों से पहाड़ों से)

इस प्रकार उन्होंने आजादी की लड़ाई के लिए लोगों का आह्वान किया ! इसके बाद उन्होंने देश-विदेश की व्यापक यात्राएं की रामकृष्ण मिशन की स्थापना की ! और धार्मिक आडंबरो रोडियो पुरोहित बाद से लोगों को बचने की सलाह दी……

अपने विचार क्रांति से उन्होंने लोगों और समाज को जगाने का काम किया…..

रवींद्रनाथ टैगोर ने उनके बारे में कहा कि यदि आप भारत को जानना चाहते हैं तो विवेकानंद को पढ़िए…

उनमें आप सब कुछ सकारात्मकता, नकारात्मक कुछ भी नहीं देख पाएंगे…..

रोमा रोला ने उनके बारे में कहा उनके द्वितीय होने की कल्पना करना भी असंभव है! और वेद जहां भी गए सर्वप्रथम ही रहे…..

4 जुलाई उन्नीस सौ दो को वे 39 वर्ष की अल्पायु में स्वामी विवेकानंद ब्रह्मलीन हो गए….

उनके क्रांतिकारी विचार आज भी जन जन को झंकृत करते रहते हैं.!………

यह थी स्वामी विवेकानंद जी की बायोग्राफी……..

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