गुलामी की जंजीरों को तोड़ने वाले मुगलो और दक्खन के नाक में दम करने वाले हिंदुस्तान में स्वराज्य की भावना को जन्म देने वाले एक ऐसे वीर जिनका नाम छत्रपति शिवाजी महाराज का इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखा गया है।
जिस समय पूरे उत्तर भारत में मुगलों का राज्य था। जिस समय हिंदू धर्म खतरे में था। जिसमें ज्यादातर हिंदू राजाओं ने मुगलों की अधीनता स्वीकार कर ली थी। उस समय एक चिंगारी जो भारत के दक्षिण में जल रही थी। Chhatrapati Shivaji Maharaj जिसने भारत में हिंदवी स्वराज के लिए लोगों के मन में उत्सुकता पैदा की।
इस राजा का राज्य भले ही बड़ा नहीं था लेकिन इस राजा ने जिस विचार को जन्म दिया। इस विचार ने भारत में मराठा साम्राज्य का शासन दक्षिण से लेकर पाकिस्तान तक कर दिया। लोग इस राजा को देवता की तरफ पूछते हैं। लोग इस राजा को इनके नाम से नहीं उनके काम के वजह से पूछते हैं।
इस राजा का नाम है छत्रपति शिवाजी महाराज मराठा साम्राज्य के सबसे पहले छत्रपति महाराज शिवाजी का जन्म 6 अप्रैल 1627 में शिवनेरी दुर्ग पूणे में हुआ था। इनके पिता शहाजी भोसले और माता का नाम जीजाबाई था
जिस समय शिवाजी का जन्म हुआ उस समय भारत की गद्दी यानी दिल्ली पर शाहजहां का शासन था।

दखन में तीन प्रदेश अहमदनगर में निजामशाही बीजापुर और आदिलशाही कोला कुंड में कुतुब शाही का शासन था। शिवाजी के पिता बीजापुर सल्तनत में कमांडर थे।
इसीलिए शिवाजी का बचपन अपनी माता के साथ गुजरा शिवाजी की माता जीजाबाई ने उनको रामायण और महाभारत की कहानियां सुनाकर उन्हें एक योद्धा और कुशल रणनीतिज्ञ कार बनाया।
छत्रपति शिवाजी महाराज के गुरु रूप में समर्थ रामदास का लिया जाता है। लेकिन उनकी असली शिक्षक उनकी माता थी।
जब शिवाजी थोड़े बड़े हुए तब उनके पिता ने उन्हें पुणे की जहांगीर सौंप दी। लेकिन शिवाजी को आदिलशाह की गुलामी मंजूर नहीं थी।
इसलिए उन्होंने मावल के गांव के लोगों को इकट्ठा किया। और अपनी एक सेना बनाने शुरू कर दी। शिवाजी जानते थे कि इन लोगों में देश पम और कुछ कर गुजरने का जज जरूर है।
जरूरत थी तो उन्हें सही नेतृत्व देने की इसीलिए छत्रपति शिवराज जी महाराज ने उन्हें छापामार युद्ध में कुशल बनाया। और हिंदवी साम्राज्य का सपना दिखाया।
छत्रपति शिवाजी महाराज ने उनके मन में देश के लिए मर मिटने की भावना पैदा की उस समय किल्लो की लड़ाई की अहम भूमिका हुआ करती थी। एक किल्ला यानी कि एक रियासत इसीलिए शिवाजी महाराज ने सबसे पहले किल्लो को जीतना शुरू किया।
16 साल की छोटी सी उम्र में ही उन्होंने दोणागढ़ किले पर कब्जा कर लिया। शिवाजी मराठा साम्राज्य का विस्तार तो करना चाहते थे लेकिन उनकी विस्तार की नीति का मूल था। कम से कम नुकसान में ज्यादा से ज्यादा विस्तार करना।
इसीलिए उन्होंने लड़ने के बजाय संधियों, मित्रता, डर और छापामार युद्ध नीति से दुश्मनों को परास्त करने की रणनीति बनाई इस रणनीति में छत्रपति शिवाजी महाराज को सफलता मिल गई और इसके बाद वह एक के बाद एक सफलता प्राप्त करते चले गए।
इसके बाद छत्रपति शिवाजी महाराज ने खुद का किल्ला जिसे किल्ला रायगढ़ का कहा जाता है उसका निर्माण शुरू करवाया

जिससे बीजापुर के सुल्तान गुस्सा हो गए और उन्होंने पहले शिवाजी के पिता को अपने पुत्र को समझाने के लिए कहा लेकिन उनकी असमर्थता जताए जाने पर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
इसके बाद छत्रपति शिवाजी महाराज ने किल्लो पर आक्रमण करना बंद कर दिया और अपने पिता के रिहा होने के कुछ समय बाद फिर से अपना विजय अभियान शुरू कर दिया।
दक्षिण में छत्रपति शिवाजी महाराज के विजय का सबसे बड़ा रोड़ा जावळी के राजा थे।

शिवाजी महाराज ने उस राजा को एक पत्र भिजवाया और अपनी अधीनता स्वीकार करने के लिए कहा लेकिन उस राजा ने स्वीकार नहीं किया
उसके बाद छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपने एक रक्षक को भेजकर उस राजा यानी कि यशवंत मोरे पर हमला करवा दिया और जावली पर कब्जा कर लिया।
इस वजह से छत्रपति शिवाजी महाराज के हौसले बुलंद हो गए और उन्होंने अपना विस्तार बीजापुर में शुरू किया। जिससे परेशान होकर आदिलशाह ने अफजल खान को शिवाजी को मारने के लिए भेजा।
अफजल खान Chhatrapati Shivaji Maharaj को उकसाने के लिए मंदिरों को तोड़ता जा रहा था। लेकिन शिवाजी ने अफजल खान से लड़ने के बजाय उनसे मिलने का प्रस्ताव भेजा
जब वो दोनों एक शिविर में मिले। तो दोनों ने एक दूसरे को मारने की कोशिश की तब शिवाजी महाराज सफल रहे और छत्रपति शिवाजी महाराज ने बड़े बहादुरी से अपने चाकू से अफजल खान को मौत के घाट उतार दिया।
छत्रपति शिवाजी महाराज ने जिस मजबूत शासन की नींव रखी

जिस विचार को अपने आने वाली पीढ़ीयो और भारत के लोगों के लिए रखा। वो आज भी हमारे दिल में जिंदा है।
छत्रपति शिवाजी महाराज की मृत्यु 1680 ईसवी में हो गई थी। लेकिन उनकी सोचने मराठा साम्राज्य को मरने नहीं दिया और बाद में बाजीराव पेशवा ने उनके सपने को एक जबरदस्त उड़ान दी
Chhatrapati Shivaji Maharaj के लिए लोगों के दिल में प्यार और सद्भाव है। क्योंकि उन्होंने मंदिरों के निर्माण में मदद की मस्जिदों को भी नुकसान नहीं पहुंचाया और सभी धर्म की स्त्रियों का सम्मान भी किया।
उनके राज्य में स्त्रियों के साथ दुर्व्यवहार करने वाले लोगों को सख्त सजा दी जाती थी भारत के इस वीर महापुरुष योद्धा ने सबसे मुश्किल परिस्थितियों में भी स्वाधीनता और स्वराज की सोच को जगाए रखा।
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