कौन थी वह महिला जिन्होंने झांसी की रानी से पहले भी अंग्रेजों का विरोध किया और उनका सामना किया!
रानी चेन्नम्मा की संघर्ष की कहानी!
Freedom fighter
स्वतंत्रता सेनानी रानी चेन्नम्मा भारत के कर्नाटक के कित्तूर राज्य की रानी थीं। सन् 1824 में (सन् 1857 के भारत के स्वतंत्रता के प्रथम संग्राम से भी 33 वर्ष पूर्व) उन्होने हड़प नीति के विरुद्ध अंग्रेजों से सशस्त्र संघर्ष किया था। संघर्ष में वह वीरगति को प्राप्त हुईं। भारत में उन्हें भारत की स्वतंत्रता के लिये संघर्ष करने वाले सबसे पहले शासकों में उनका नाम लिया जाता है!
लेकिन आज उन्हें कोई याद नहीं करता और कोई नहीं जानता की रानी चेन्नम्मा कौन थी!
रानी चेन्नम्मा !
mother of india ! Freedom fighter!
रानी चेन्नम्मा !
जन्म
चेन्नम्मा23 अक्टूबर 1778काकती, बेलगाँव तहसील, बेलगाँव जिला, मैसूर, ब्रितानी भारत !
मृत्यु
21 फ़रवरी 1829 (उम्र 50)बैलहोंगल तहसील, बेलगाँव, मैसूर, ब्रितानी भारत !
राष्ट्रीयता
भारतीय!
अन्य नाम
रानी चेन्नम्मा, कित्तूर रानी चेन्नमा !
प्रसिद्धि कारण
1824 में ( हड़प नीति) ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ विद्रोह!
रानी चेनम्मा के साहस !
रानी चेनम्मा के साहस एवं उनकी वीरता के कारण देश के विभिन्न हिस्सों खासकर कर्नाटक में उन्हें विशेष सम्मान हासिल है! और उनका नाम आदर के साथ लिया जाता है। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के संघर्ष के पहले ही रानी चेनम्मा ने युद्ध में अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए थे। हालांकि उन्हें युद्ध में सफलता नहीं मिली और उन्हें कैद कर लिया गया। अंग्रेजों के कैद में ही रानी चेनम्मा का निधन हो गया।ऐसी क्रांतिकारी जिनकी मौत अंग्रेजों के कैद में ही हो गई ! उन्हें आज कोई याद नहीं करता उनके लिए एक जय हिंद तो बनता है!
एक वैसी मां की जीवन की कहानी जो अपने पति और बच्चे को मरने के बाद!भी अपने देश के मिट्टी के लिए अपनी पूरी जिंदगी दांव पर लगा दी! और संघर्ष करते-करते वीरगति को प्राप्त हुई! Freedom fighter
कर्नाटक में बेलगाम के पास एक गांव ककती में 1778 को पैदा हुई! चेन्नम्मा के जीवन के साथ कई बार प्रकृति ने क्रूर मजाक किया। पहले पति का निधन हो गया। कुछ साल बाद एकलौते पुत्र का भी निधन हो गया और वह अपनी मां को अंग्रेजों से लड़ने के लिए अकेला छोड़ गया। तब से वह अकेले लड़ते ही अंग्रेजों की सामना करती रही!
बचपन से रानी बनने तक!
बचपन से ही घुड़सवारी, तलवारवाजी, तीरंदाजी में विशेष रुचि रखने वाली रानी चेन्नम्मा की शादी बेलगाम में कित्तूर राजघराने में कर दी गई! राजा मल्लासारजा की रानी चेनम्मा ने पुत्र की मौत के बाद शिवलिंगप्पा को अपना उत्ताराधिकारी बनाया। अंग्रेजों ने रानी के इस कदम को स्वीकार नहीं किया और शिवलिंगप्पा को पद से हटाने का आदेश दिया। यहीं से उनका अंग्रेजों से टकराव शुरू हुआ और उन्होंने अंग्रेजों का आदेश स्वीकार करने से इनकार कर दिया।
हड़प नीति को इनकार करने के बाद!
अंग्रेजों की नीति ‘डाक्ट्रिन ऑफ लैप्स’ ( हड़प नीति) के तहत दत्तक पुत्रों को राज करने का अधिकार नहीं था। ऐसी स्थिति आने पर अंग्रेज उस राज्य को अपने साम्राज्य में मिला लेते थे! कुमार के अनुसार रानी चेन्नम्मा और अंग्रेजों के बीच हुए युद्ध में इस नीति की अहम भूमिका थी! 1857 के आंदोलन में भी इस नीति की प्रमुख भूमिका थी! और अंग्रेजों की इस नीति सहित विभिन्न नीतियों का विरोध करते हुए कई रजवाड़ों ने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया था।
रानी चेन्नम्मा किया अंग्रेजों का विरोध!
डाक्ट्रिन ऑफ लैप्स के अलावा रानी चेन्नम्मा का अंग्रेजों की कर नीति को लेकर भी विरोध था ! और उन्होंने उसे मुखर आवाज दी। रानी चेन्नम्मा पहली महिलाओं में से थीं! जिन्होंने अनावश्यक हस्तक्षेप और कर संग्रह प्रणाली को लेकर अंग्रेजों का विरोध किया!
वीरगति को प्राप्त रानी चेन्नम्मा !मेरी मां,♥️♥️♥️♥️
अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध में रानी चेन्नम्मा ने अपूर्व शौर्य का प्रदर्शन किया! लेकिन वह लंबे समय तक अंग्रेजी सेना का मुकाबला नहीं कर सकी! उन्हें कैद कर बेलहोंगल किले में रखा गया जहां उनकी 21 फरवरी 1829 को उनकी मौत हो गई! पुणे-बेंगलूरु राष्ट्रीय राजमार्ग पर बेलगाम के पास कित्तूर का राजमहल ! तथा अन्य इमारतें गौरवशाली अतीत की याद दिलाने के लिए मौजूद हैं!
Freedom fighter
जय हिंद वंदे मातरम