मेजर ध्यानचंद के जीवन की पूरी कहानी! | Life story of major Dhyan Chand

Major Dhyan Chand a hockey player!

Struggle of Major Dhyan Chand!

पहले ही मैच में 3 गुण ओलंपिक खेलों में 35 गोल और इंटरनेशनल मैचों में 400 गोल सब मिलाकर 1000 से भी ज्यादा गोल!

मेजर ध्यानचंद को हॉकी का जादूगर कहा जाता है क्योंकि उनकी तरह हॉकी प्लेयर ना कोई था ना कोई होगा!

उनके अगेंस्ट खेल रहे खिलाड़ियों को उन पर शक होता कि वह किसी स्पेशल स्टिक से खेल रहे हैं!

एक बार होलैंड में उनकी हॉकी स्टिक में चुंबक होने का डाउट जाहिर किया गया और उनकी स्टिक को तोड़कर देखा गया!

जर्मनी के तानाशाह हिटलर से लेकर महान क्रिकेटर डॉन ब्रैडमैन तक को अपने खेल से दीवाना बना दिया! यह बात है चारों कॉस्ट 1936 को खेले गए ओलंपिक फाइनल की जिसमें भारत जर्मनी आमने-सामने थे!

मैच जर्मनी में खेला जा रहा था पूरा स्टेडियम भरा हुआ था! और उस मैच को देखने जर्मनी के तानाशाह हिटलर भी अपने टीम का हौसला बढ़ाने के लिए वहां मौजूद थे!

मैच शुरू हुआ और पहले हाफ तक मुकाबला बहुत खड़ा था लेकिन भारत 1-0 से गोल बनाने में कामयाब हुआ था! उसके बाद सेकंड हाफ खेल में जो हुआ वह किसी ने सोचा भी नहीं था!

लोगों का कहना था जर्मनी के विशेषज्ञों ने पेज को पूरी तरह से गिला कर दिया था? जिससे भारतीय सस्ते जूते पहनने उस पर दौड़ना पाए और मैच हार जाए!

गीली पिच को देखकर मेजर ध्यानचंद ने अपने जूते निकाल फेंके जिससे वह अच्छी तरह दौड़ सके उसके बाद वह और उनकी टीम ने कुल एक के बाद एक 7 गोल किए और वह मैच जीत गए!

अपनी टीम की शर्मनाक हार को देखकर तानाशाह हिटलर खेल को बीच में ही छोड़ कर चले गए!

अगले दिन ध्यानचंद के खेल को देखते हुए हिटलर ने अपने ऑफिस में बुलाया और ऊपर से नीचे तक पूरी तरह उसको देखा! उनके फटे हुए जूते को देखते हुए उन्हें एक अच्छी नौकरी की लालच दी तथा उसने उनको जर्मनी की तरफ से खेलने के लिए कहा!

लेकिन ध्यानचंद अपने भारत के लिए खेलना जरूरी समझा और हिटलर को सॉरी कहकर वापस आ गए!

क्रिकेट के बेस्ट प्लेयर सन डॉन ब्रैडमैन ने मेजर ध्यानचंद के सम्मान में कहा कि वह क्रिकेट के रनों की भांति गोल बनाते हैं!

मेजर ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त 1905 को इलाहाबाद उत्तर प्रदेश में हुआ था!उनके पिता सेना में सफाई थे! बचपन में ध्यानचंद को हॉकी में कोई खास इंटरेस्ट नहीं था! लेकिन उन्हें रेसलिंग पसंद थी उन्होंने पास के स्कूल से अपनी पढ़ाई की!

1922 में 16 साल की एज में वह सेना में भर्ती हो गए! और फिर उसके बाद उनका इंटरेस्ट हॉकी में बढ़ने लगा! उनके साथ के मेजर तिवारी ने उनको हॉकी खेलने के लिए प्रेरित किया!

उनका इंटरेस्ट हॉकी में इतना ज्यादा बढ़ने लगा कि अपनी ड्यूटी के बाद रात के समय वह हॉकी की प्रैक्टिस करते थे!

पहले उनका नाम ध्यान सिंह था! लेकिन उनके दोस्तों ने चांदनी रात में उनको प्रैक्टिस करता देख! उन्हें चंद्र कहने लगे और धीरे-धीरे उनका का नाम ध्यानचंद सिंह ( Dhyan Chand ) हो गया!

उन्होंने पहली बार हॉकी सेना की तरफ से खेली तथा अपना बेस्ट परफॉर्मेंस दिया! इसे सेना में उनकी लगातार प्रमोशन होती गई और वह एक सिपाही से मेजर बन गए! 1926 में उन्हें इंटरनेशनल मैच में उतारा गया! जहां उन्होंने न्यूजीलैंड के खिलाफ अपना डेब्यू मैच खेला था!

1927 में लंदन फॉक्स स्टोन फेस्टिवल में उन्होंने ब्रिटिश हॉकी टीम के खिलाफ 10 मैचों में 72 में से 36 गोल किए! 1928 में नीदरलैंड के समर ओलंपिक में खेलते हुए उन्होंने तीन में से दो गोल दागे!

भारत ने यह मैच 3-0 से जीतकर गोल्ड मेडल अपने नाम किया था! 1932 में लॉस एंजेलिस समर ओलंपिक में भारत में अमेरिकी को 24-1 से धूल चटा कर मैच जीता! मेजर ध्यानचंद ने इस साल 338 में से 133 गोल अकेले मारा था!

वह तीन बार ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीतने वाले भारतीय हॉकी टीम के सदस्य रहे हैं!

1948 तक 42 साल की उम्र तक उन्होंने इंटरनेशनल मैच में अपना योगदान दिया है!

इसके बाद वह रिटायर हो गए इसके बावजूद भी वह आर्मी में होने वाले मैसेज में खेलते रहे!

1956 में मेजर ध्यानचंद को भारत के सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया!

मेजर ध्यानचंद को एजेंट ऑफ द हॉकी कहा जाता है 29 अगस्त को उनके जन्मदिन के दिन नेशनल स्पोर्ट्स डे के तौर पर मनाया जाता है!

लेकिन इस खिलाड़ी के आखरी दिन बहुत ही दुखद में बीते भारत को श्रेष्ठ स्थान पर हॉकी में पहुंचाने वाले खिलाड़ी भारत भूल गया! उनके लिवर में कैंसर हो गया था! पैसों की कमी की वजह से इलाज ठीक से ना हो पाया!

दिल्ली के एम्स हॉस्पिटल के जनरल वार्ड में 3 दिसंबर 1979 मैं इस दुनिया को अलविदा कर गए!

मेजर ध्यानचंद को आज भी हॉकी लवर्स भगवान की तरह पूजते हैं!

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