भारत की क्रान्तिकारी महिला थीं।
Mandakini hajra , जिन्हें गाँधी बुढ़ी’ के नाम से भी जाना जाता था।
मातंगिनी हाजरा
जन्म
19 अक्टूबर 1870 को तमलुक, बंगाल प्रेसीडेंसी, ब्रिटिश भारत
मृत्यु
29 सितम्बर 1942 (उम्र 71) को
तमलुक, बंगाल प्रेसीडेंसी, ब्रिटिश भारत
प्रसिद्धि कारण
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय कार्यकर्ता
आइए हम आपको मातंगिनी हाजरा के जीवन से रूबरू कराते हैं!
मातंगिनी हाजरा का जन्म पूर्वी बंगाल (अभी जो बांग्लादेश है) के मिदनापुर जिले के होगला गांव में एक अत्यन्त गरीब परिवार में हुआ था! गरीबी और बाल विवाह की मान्यता होने के कारण 12 वर्ष की अवस्था में ही उनके परिवार वाले ने उनका विवाह ग्राम अलीनान के 62 वर्षीय विधुर त्रिलोचन हाजरा से कर दिया गया!
इस बार भी दुर्भाग्य उनके पीछे ही पड़ा रहा! वे छह वर्ष बाद वह निःसन्तान ही विधवा हो गयीं! पति की पहली पत्नी का पुत्र उनसे बहुत घृणा करता था! अतः मातंगिनी एक अपनी अलग झोपड़ी बनाकर उसी में रहकर मजदूरी से जीवन व्यतीत करने लगीं! गाँव वालों के दुःख-सुख में सदा सहभागी रहने के कारण वे पूरे गाँव वालों की नजर में माँ के समान पूज्य हो गयीं!
स्वाधीनता आंदोलन का कार्यकर्ता!
सन 1932 में गान्धी जी के नेतृत्व में देश भर में स्वाधीनता आन्दोलन चल रहा था! वन्देमातरम् का उच्चारण करते हुए जुलूस प्रतिदिन निकलते थे! जब एक दिन ऐसा एक जुलूस मातंगिनी जी के घर के पास से निकला, तो उन्होंने उन्हें बंगाली परम्परा के अनुसार शंख ध्वनि से उनका स्वागत किया और उसी जुलूस के साथ चल दी! तामलुक के कृष्णगंज बाजार में पहुँचकर एक सभा हुई। वहीं पर मातंगिनी जी ने सबके साथ स्वाधीनता संग्राम में तन, मन, धन से भाग लेने और संघर्ष करने की शपथ ली!
मातंगिनी को मुर्शिदाबाद जेल में बन्द कर दिया।
मातंगिनी को अफीम की लत थी! पर अब उसके बदले उनके सिर पर स्वाधीनता का नशा सवार हो गया था! 17 जनवरी,, 1933 को ‘करबन्दी आन्दोलन’ को दबाने के लिए बंगाल के तत्कालीन गर्वनर एण्डरसन तामलुक आये, तो उनके विरोध में प्रदर्शन किया गया! वीरांगना मातंगिनी हाजरा सबसे आगे काला झण्डा लिये डटी थीं! वह ब्रिटिश शासन के विरोध में नारे लगाते हुई दरबार तक पहुँच गयीं। इस पर पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और छह माह का सश्रम कारावास देकर मुर्शिदाबाद जेल में बन्द कर दिया।
भारत छोड़ो आंदोलन जब जोर पकड़ा तो! मातंगिनी उसमें कूद पड़ीं!
1935 में तामलुक क्षेत्र भीषण बाढ़ के कारण हैजा और चेचक की बीमारी के चपेट में आ गया। मातंगिनी जी अपनी जान की चिन्ता किये बिना ही राहत कार्य में जुट गयीं! और 1942 में जब ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ ने जोर पकड़ा, तो मातंगिनी उसमें कूद पड़ीं! आठ सितम्बर को तामलुक में हुए एक प्रदर्शन में पुलिस की गोली से तीन स्वतंत्रता सेनानी मारे गये!
लोगों ने इसके विरोध में 29 सितम्बर को और भी बड़ी रैली निकालने का निश्चय किया! इसके लिये मातंगिनी जी ने गाँव–गाँव में घूमकर रैली के लिए 5,000 तक लोगों को तैयार किया! सब लोग दोपहर में ही सरकारी डाक बंगले पर पहुँच गये! तभी पुलिस की बन्दूकें गरज उठीं! मातंगिनी एक चबूतरे पर खड़ी होकर नारे लगवा रही थीं! तभी एक गोली उनके बायें हाथ में लगी! उन्होंने तिरंगे झण्डे को गिरने से पहले ही दूसरे हाथ में ले लिया। तभी दूसरी गोली उनके दाहिने हाथ में और तीसरी उनके माथे पर लगी! मातंगिनी हाजरा जी की मृत शरीर वहीं लुढ़क गयी।और उन्होंने अपने देश के तिरंगा के लिए अपनी जान न्योछावर कर दी!
उनकी इस बलिदान से क्या बदला?
उनकी इस बलिदान से पूरे क्षेत्र में इतना जोश उमड़ा कि लोग गुस्से से आगबबूला हो गए! और दस दिन के अन्दर ही लोगों ने अंग्रेजों को वहां से खदेड़कर वहाँ स्वतंत्र सरकार स्थापित कर दी! जिसने 21 महीने तक काम किया।
इन्दिरा गान्धी जी ने उनका अनावरण कर उन्हें अपने श्रद्धासुमन अर्पित किये!
दिसम्बर, 1974 में भारत की प्रधानमन्त्री इन्दिरा गान्धी जी ने अपने प्रवास ( कार्यकाल) के समय ही तामलुक में मांतगिनी हाजरा की मूर्ति बनाकर! उनका अनावरण कर उन्हें अपने श्रद्धासुमन अर्पित किये!
Mandakini hajra
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