क्या आप जानते हैं वह कौन क्रांतिकारी थे जिन्होंने 58 दिन अनशन करके अपनी जान गवाकर आंध्र प्रदेश बनवाएं!

58 दिन के अनशन के बाद जान गंवाकर आंध्र प्रदेश बनवाने वाले श्रीरामुलु की कहानी!

Potti Sriramulu

पोट्टी श्रीरामुलु

जन्म

16 मार्च 1901 मद्रास प्रेसिडेंसी

मृत्यु

15 दिसंबर 1952 चेन्नई

मृत्यु के कारण

बिना भोजन पानी 58 दिन अनशन करना!

दूसरा नाम

अमरजीबी

कहानी है उस महान क्रांतिकारी का जिन्होंने 58 दिन अनशन कर आंध्र प्रदेश को बनवाया!

1917 में कांग्रेस ने एक स्टैंड लिया था! वह स्टैंड ये था कि राज्यों का गठन भाषा के आधार पर किया जाना चाहिए! लोगों द्वारा भाषा की विविधता को खूब बढ़ावा दिया गया! भाषा के आधार पर ही प्रोविंशियल कांग्रेस कमिटियां (जो बाद में प्रदेश कांग्रेस कमिटियां बनीं) भी बनने लगीं! ये सब-कुछ था तो बहुत सही, लेकिन कांग्रेस वालों को ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था! कि 30 साल के बाद परिस्थितियां उलट होंगी और ये स्टैंड बैकफायर कर हो जाएगा!

1947 में जब देश आज़ाद हुआ था! तब सत्ता कांग्रेस के हाथ में आई थी! अब भाषा के आधार पर राज्यों के गठन की बात नए सिरे से शुरू हुई! पहले ही भारत के धर्म के अधार पर दो टुकड़े हो चुके थे! अभी पार्टीशन के ज़ख्म ताजे थे! और डर था कि अगर भाषा ने भी संप्रदाय वाला तूल पकड़ लिया तो बचा हुआ भारत भी कई टुकड़ों में बंट जाएगा. उस समय कांग्रेस में हर बात के कई मत थे लेकिन इस बात को लेकर नेहरू, पटेल और गांधी तीनों एक ही मत थे! क्योंकि वह जानते थे!

1950 में बना मद्रास राज्य जोकि तमिल, मलयाली, कन्नड़ और तेलुगू इलाकों का मिक्सचर था!

भारत के विभाजन भाषा के आधार पर अलग राज्य मांग रहे गुटों में सबसे उग्र आवाज़ तेलुगू समुदाय की थी! 1950 में बना मद्रास राज्य जोकि तमिल, मलयाली, कन्नड़ और तेलुगू इलाकों का मिक्सचर था. उस समय हिंदी के बाद सबसे ज्यादा संख्या तेलुगू बोलने वालों लोगो की ही थी! उस समय की मद्रास सिटी यानी आज के चेन्नई में भी तेलुगू-भाषा मेजोरिटी में थे! उन लोगों की मांग थी कि मद्रास राज्य से अलग एक तेलुगू भाषी प्रदेश यानी कि आंध्र प्रदेश का गठन किया जाए!

मद्रास राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री के विरोध में कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया!

जब 1950 में मांग तेज़ हो गई! मद्रास राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री ने विरोध में कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया! तभी 1951 के मानसून में राजनीति छोड़ संत बने स्वामी सीताराम आंध्र-प्रदेश की मांग के लिए अनशन पर बैठे! करीब पांच हफ्ते बाद विनोबा भावे कहने पर उन्होंने अनशन ख़त्म किया! अनशन तो ख़त्म कर दिया, लेकिन शांत नहीं बैठे! सीताराम ने तेलुगू-भाषी इलाकों का दौरा कर आंध्र की मांग को जन-मानस के बीच उतार दिया!

1952 में भारत के पहले आम चुनाव होने थे. साथ ही राज्यों के चुनाव भी हुए. कांग्रेस ने देश भर में पताका लहरा दी. लेकिन मद्रास में पार्टी को मुंह की खानी पड़ी! मद्रास विधानसभा की 145 तेलुगू सीटों में से सिर्फ 43 पर कांग्रेस जीती! उन लोगों का मेसेज साफ़ था आंध्र प्रदेश नहीं तो वोट नहीं! सी राजगोपालाचारी और जवाहरलाल नेहरू आंध्र समस्या को लेकर गंभीर थे!

19 अक्टूबर, 1952 को ही पोट्टि श्रीरामुलु आमरण अनशन पर बैठ गए!

Potti Sriramulu
तेलुगू समुदाय का गुस्सा ज्यादातर दो लोगों को कोसकर निकलता था! – पंडित जवाहरलाल नेहरू और सी. राजगोपालाचारी उर्फ़ ‘राजाजी’उन दोनों लोगों ने साफ़ ज़ाहिर कर दिया था! कि आंध्र प्रदेश को लेकर उनका मत दूसरी तरफ है! उस समय के चुनाव के नतीजों ने आंध्र प्रदेश के आन्दोलन में नई ऊर्जा डाल दी! 19 अक्टूबर, 1952 को ही पोट्टि श्रीरामुलु आमरण अनशन पर बैठ गए! श्रीरामुलु पहली बार अनशन पर नहीं बैठे थे! इससे पहले भी उन्होंने 1946 में अछूत माने जाने वाले लोगों के लिए मद्रास के सभी मंदिरों को खोलने की मांग को लेकर भी श्रीरामुलु अनशन पर बैठे थे.

अगर गांधीजी होते तो क्या होता है श्रीरामुलु के साथ !

कांग्रेस का ध्यान उस समय केवल स्वतंत्रता की ओर टिका हुआ था! लेकिन गांधी जी का ध्यान श्रीरामुलु पर था! श्रीरामुलु गांधी जी के ही शिष्य थे! और गांधी जी ने श्रीरामुलु को 1946 वाला अनशन तोड़ने के लिए मना लिया! लेकिन 1952 से पहले ही गांधी जा चुके थे! तो अब कौन उनको अनशन तोड़ने के लिए मनाता और उनके साथ जा चुकी थी श्रीरामुलु को अनशन से उठाने वाली ताकत! 3 दिसंबर तक श्रीरामुलु के अनशन को करीब छह हफ्ते हो गए थे! इसी दिन नेहरू ने राजाजी को एक खत में लिखा!

‘मैं अपनी राय पर अब भी कायम हूं, मैं इस अनशन को पूरी तरह नज़रंदाज़ करने का प्रस्ताव रखता हूं’!

लेकिन आंदोलनकारी उग्र होने लगे! ट्रेनें रोकी जाने लगीं. नेहरू को ध्यान देना पड़ा! 12 दिसंबर को नेहरू ने राजाजी को एक दूसरी चिट्ठी में लिखा कि आंध्र की मांग मानने का समय आ गया है! दो दिन बाद राजाजी ने जवाब में नेहरू को लिखा कि श्रीरामुलु को दिल्ली बुला लें!

15 दिसंबर को श्रीरामुलु ने अनशन के 58वें दिन अपने प्राण त्याग दिए!Potti Sriramulu

लेकिन उनकी सुझाव पर अमल करने में अब बहुत देर हो चुकी थी! क्योंकि 15 दिसंबर को श्रीरामुलु ने अनशन के 58वें दिन अपने प्राण त्याग दिए! पूरे आंध्र में हाहाकार मच गया! जनता ने सरकारी दफ्तरों पर हमला बोल दिया! ट्रेनें रोकीं और तोड़फोड़ मचा दीं. इस विरोध में सरकारी संपत्ति को कई लाख का नुकसान झेलना पड़ गया! जवाब में पुलिस फायरिंग ने भी कई लोगों की जान ले ली! हालात हाथ से निकलते देख प्रधानमंत्री नेहरू ने श्रीरामुलु जी की मौत के चार दिन बाद ही 19 दिसंबर को बयान जारी कर आंध्र की मांग को मंज़ूरी दे दी! कि आंध्रप्रदेश एक अलग राज्य हो सकता है!

नए राज्य आंध्र प्रदेश बनने का उत्सव and statue of Potti Sriramulu

तब 1 अक्टूबर, 1953 को नए राज्य आंध्र प्रदेश बनने का उत्सव उसकी नई राजधानी कुरनूल में उद्घाटन समारोह हुआ! राजाजी ने इस समारोह में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई! और नेहरू इस कार्यक्रम में उपस्थित होने के साथ-साथ इस कार्यक्रम के चीफ गेस्ट भी थे!

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