Shree Krishna सावन का महीना आते ही दुनिया भर के भारतीय राखी का दिन मनाने के लिए उत्सुक हो जाते हैं कोई रिश्तेदारी ना होने के बावजूद भी राखी से भाई बहन के संबंध को निभाने का मौका मिलता है|
Shree Krishna राखी का इतिहास तो हमें महाभारत युग से देखने को मिलता है भगवान Shree कृष्ण को श्र्रीतदेवी नाम कि एक चाची थीं उसने शिशुपाल नामक एक विकृत बच्चे को जन्म दिया था, श्र्रीतदेवी इस घटना से बहुत दुखी थी| फिर उनको पता चला की जिसके स्पर्ष से शिशुपाल स्वथ होगा उसी के हाथों उसकी मृत्यु भी होगी| यह जानकर श्र्रीतदेवी को बहुत दुःख हुआ |
वह सोच कर परेशां रहती की आखिर कौन है जो मेरे बेटा को पूर्ण रूप से स्वस्थ करेगा| ऐसे ही वह आपने आगन में बैठे सोच – शोच कर रो रही थी तभी अचनका बालगोपाल वासुरी वाला श्रीकृष्ण वह आ धमके |
आखिर उनसे क्या कोई आपनी दुःख और सुख छुपा सकता है भला| लफिर भी श्री कृष्णा जान बुझ कर आपने चची माँ को परेशन करने के लिए पूछने लगे
वो मेरी प्यारी चची भला मेरे रहते आप क्यों रो रही है|
एक दिन Shree कृष्ण अपने चाची के घर आएं थे और जयसे ही श्र्रीतदेवी ने श्री कृष्ण के हाथ में शिशुपाल को दिया वह स्वस्थ व सुंदर हो गया मानो कि श्र्रीतदेवी यह बदलाव देख कर अत्यंत खुश हो गई लेकिन उसकी मृत्यु श्री कृष्ण के हाथ से होने के संभावना से वह विचलित हो गई
वह भगवान Shree कृष्ण से प्राथना करने लगी भले ही शिशुपाल कोई गलती कर बैठे उसे श्री कृष्ण के हाथों सजा नहीं मिलनी चाहिए तो भगवान श्री कृष्ण ने उनसे वादा किया कि में उनके गलतियों को माफ कर दुंगा लेकिन वह अगर सौ (१००) से ज्यादा गलती कर बैठेगा तो मैं उसे जरूर सजा दुंगा
शिशुपाल बड़ा हो कर जेडी नामक राज्य का राजा बन गया वो एक राजा भी था साथ ही साथ भगवान Shree कृष्ण का रिश्तेदार भी लेकिन वह बहुत क्रुर राजा बन गया
अपने राज्य के लोगों को बहुत सताने लगा और बार बार भगवान श्री कृष्ण को चुनौती देने लगा एक बार तो उसने भरी राज्य सभा में ही भगवान श्री कृष्ण कि निंदा कर दी और बस शिशुपाल ने उसी दिन सौ (१००) गलतियों कि सिमा पार कर दी थी तुरंत ही भगवान श्री कृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र का शिशुपाल के ऊपर प्रयोग किया इसी तरह से बहुत चेतावनी के बाद भी शिशुपाल ने अपने गुण नहीं बदले और अंत में उसे अपनी सजा भुगतनी पड़ी भगवान श्री कृष्ण ने जब क्रोध में अपने सुदर्शन चक्र को छोड़ रहे थे तब उनके ऊंगली में भी चोट लग गई
भगवान श्री कृष्ण के आस पास के लोग उस घाव पर कुछ बांधने के लिए इधर-उधर भागने लगे लेकिन वह पे खड़ी द्रोपदी कुछ सोच समझे बिना अपने साड़ी के कोने को फ़ाड़ कर भगवान श्री कृष्ण के घाव पर लपेटा शुक्रिया प्यारी बेहना तुमने मेरे कष्ट में साथ दिया है तो मैं भी तुम्हारे कष्ट में तुम्हारा साथ देने का वादा करता हुं ये कह के भगवान श्री कृष्ण ने द्रोपदी को उनकी रक्षा करने का आश्वासन दिया था और इस घटना के बाद ऐसा माना जाता है कि रक्षाबंधन का पावन पर्व प्रारंभ शुरू हुआ

जब कौरवों ने पुरी राज्य सभा के सामने द्रोपदी साड़ी खींच कर जब उसका अपमान करने का प्रयास किया तब भगवान श्री कृष्ण ने द्रोपदी को बचाकर अपना वादा पूरा किया था
उस समय से लेकर बहने अपने भाईयों को राखी बांध रहीं हैं और बदले में भाई जीवन भर अपनी बहन कि रक्षा करने का आश्वासन देते आ रहे हैं सावन मास के पुर्णिमा पर राखी के अलावा कुछ और त्योहार भी मनाते जाते हैं कुछ लोग इसी दिन ज्ञद्नोपविद बदलते हैं इसलिए इस दिन को चंध्याला पुर्णिमा भी कहते हैं
इस दिन उड़िसा और पश्चिम बंगाल में कुछ लोग राधा और कृष्ण कि मुर्तियो को पालने में रख कर झुला झुलाते है और इस दिन को झुलन पुर्णिमा भी कहते हैं उत्तर भारत के कुछ राज्यों में इस दिन पर गेहूं के बीज बोते हैं
और इस दिन को कजरी पुर्णिमा से पहचाना जाता हैं केरल और महाराष्ट्र के लोग इस दिन को नारली पुर्णिमा कहते हैं और वे समुद्र देवता कि पुजा करते हैं हालांकि इस दिन कई तरह के उत्सव मनाये जाते हैं और लेकिन उन में सबसे लोकप्रिय और प्रमुख त्योहार होता है रक्षाबंधन……..