Sita नाम की एक लड़की थी। जिसका जिसकी शादी बहुत ही काम उम्र हो गई थी। माॅं बाप भी क्या करते रीति रिवाज़ के आगे मजबुर थे।
सीता जिसके अभी खेलने कूदने दिन थे। उसकी शादी कर ससुराल विदा कर दिया। ससुराल भी अच्छा खासा बड़ा परिवार था।
Sita को कुछ भी नहीं आता था। सास ने खाना बनाने को कहा तो उसने अपनी सास से कहा मुझे खाना बनाना नहीं आता तो सास भी सास ही ना है लगी ताने देने लगी।
इतना ही नहीं और कहा तुझे खाना बनाने आता है। या नहीं खाना तो तू ही बनाएगी। हम सब जब खेत से वापस आय तो खाना तैयार होना चाहिए।
अगर ऐसा नहीं हुआ तो आज तेरी शामत आएगी। ऐसा कहकर सास और घर के बाकी लोग खेत में काम करने चले गए।
Sita अकेली घर में रो रही थी। उसे समझ नहीं आ रहा था। कि वो क्या करे। सब्जी लेकर बैठी थी। काटते हुए हाथ भी कट गया।
बहुत जोर से रोने लगी तभी Sita का पति सोनू पानी पीने के बहाने से देखने आया कि सीता क्या के रही है। सोनू ने देखा कि सीता रोए जा रही है। और उसके हाथ से खून निकल रहा है।
सोनू ने झट से कपड़ा लिया और Sita के हाथ पे बांध दिया , और बैठ कर सब्जी काटने लगा। सीता ने कहा मेरी तरह तुम्हारा भी हाथ कट जाएगा।
तो सोनू ने कहा अरे नहीं मुझे तो आदत है। में जहा पढ़ता हूं वहा ख़ुद ही खाना बनाना पड़ता है।
सोनू ने पूछा तुम्हे खाना बनाना नहीं आता ना सीता बोली नहीं हमेशा माॅं बोलती थी। खाना बनाना सिखलो लेकिन में खेलने भाग जाती थी।
सोनू ने कहा चलो में तुम्हे सिखाता हूं। धीरे धीरे दोनों ने मिलकर खाना बना लिये और सोनू ने सीता से कहा अगर कोई पूछे तो मेरा नाम मत लेना अभी सब लोग आते होंगे में बाहर जा रहा हूं।
सब लोग घर आय हाथ पैर धोकर खाना मांगने लगे। सास ने तो सोचा कि खाना तो उसने बनाया नहीं होगा। आज उसे बहुत पीटूंगी।
सब लोग बैठे हुए थे। और छोटी सी सीता सबको खाना देने लगीं। सास बोली क्यूं रे तु तो बोल रही थी कि तुझे खाना बनाना नहीं आता तो ये किसने बनाया।
डरते हुए सीता बोली माॅं को खाना बनाते हुए देखा करती थी उसी से थोड़ा याद करके बनाई हूं।
सोनू भी बाहर से आया तो उसकी माॅं बोली कहा था तू । सोनू ने कहा माॅं में खेलने गया था। बहुत भूक लगी है खाना दोना।
सीता ने सोनू को खाना दिया और जब वो अपने लिए खाना लेने गई तो खाना ख्तम हो गया था।
तो सोनू ने सीता के लिए अपने खाने में से बचाकर उसको खिला दिया सोनू सीता बहुत ख्याल रखता था।
जब सीता को मालूम हुआ कि सोनू पढ़ाई के लिए बाहर जाने वाला है। तो सीता रोने लगी। उसे पता था सोनू के जाने के बाद उसकी मदत करने वाला कोई नहीं है।
सोनू एक अच्छे दोस्त की तरह सीता की मदद करता था। सोनू जानता था कि उसके जाने के बाद सीता एकदम अकेली हो जाएगी।
उसने सीता को चुप कराया और समझाया कहा मेरी पढ़ाई पूरी होने के बाद मुझे अच्छी नौकरी मिलेगी। फिर उसके बाद में तुम्हे अपने साथ शहर ले जाऊंगा। तब तक तुम यहां पर अच्छे से रहना ।
सीता मान गई और और सोनू को जाकर सात साल हो गए अब सीता भी बड़ी हो चुकी थी और सोनू की नौकरी भी लग गई थी। लेकिन इस बीच सीता का बहुत बुरा हाल हुआ।
उसके ससुराल वाले उसपर इतने अत्याचार कर रहे थे। हर बात पे ताने मारेंगे इतना ही नहीं उसपर हाथ भी उठने से नहीं चूके उसे अपने माॅं बाप से भी नहीं मिलने देते थें।
सीता बिमार और बहुत कमजोर होने के बाद भी काम करती अगल बगल के लोग उसकी हालत को देख रो पड़ते पर कुछ कर नहीं पाते।
अब सीता की सहन शक्ति ख़त्म हो गई और उसने सोचा कि ऐसी जिन्दगी जीने से अच्छा है कि में जहर खाकर मर जाऊ।
जहर खाने ही जा रही थी कि सोनू ने देख लिया। और उसके हाथ से जहर छीन कर फेंक दिया और सीता को गले से लगा लिया और वो फूट फुट के रोने लगी।
सोनू ने पूछा ये क्या कर रही थी। तुम सीता बोली अब में और नहीं सह सकती थी। इसलिए मैं मर जाना चाहती थी।
सोनू ने अपने घरवालों से कुछ नहीं कहा बस इतना कहा मेरी नौकरी लग गई है। और
में सिता को साथ लेकर जाऊंगा माॅं बोली अरे तू उसे अपने साथ ले जाएगा। तो हमारी सेवा कौन करेगा।
सीता ने बहुत सेवा कर ली। अब वो मेरे साथ जाएगी बस सभी ने ऐतराज़ जताया फिर भी सोनू ने किसी की नहीं सुनी और सीता को अपने साथ शहर ले गया।
वहा पर सीता का इलाज कराया और उसका बहुत अच्छी तरह से ख्याल रखा। इससे सीता बहुत जल्द ठीक और स्वस्त भी हो गई।
कुछ साल बाद सीता माॅं बनने वाली थी। दोनों बहुत खुश थे।गांव में अपने घरवालों को बताया।
तो सोनू की माॅं बोली ऐसी हालत में वो वहा अकेले रहेगी। तू तो ऑफिस चला जाएगा तो उसका ख्याल कौन रखेगा।
ऐसी हालत में बहू को अकेला नहीं छोड़ते तू उसे गांव लेके आ हम सब है ना उसका ख्याल रखने के लिए।
सोनू को माॅं की बात सही लगी और दोनों गांव आ गये ,जब तक सोनू था। सब कोई सीता का ख्याल रख रहा था। सोनू ज्यादा दिन नहीं रुक सकता था।
उसे लगा अब सब ठीक है। तो को सीता को छोड़ वापस शहर चला गया। सोनू के जाते ही सब ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया।
Sita अपने रूम में आराम कर रही थी। तभी उसकी सास ने कहा अरे बहू कहा है।
इधर आ सीता गई तो उसे इतने सारे बर्तन दे दिए और कहा ज्यादा आराम करेगी तो तुझे ही तकलीफ होगी ।
काम करेगी तो बच्चा अच्छे से होगा सीता ने सोचा कि मेरा भला ही सोच रही है। और काम करने लगी।
एक के बाद एक काम बढ़ते ही चले गए और वो भी चुप चाप करते रहती ना ठीक से खाना खाती ना ही आराम करती।
उसकी तबीयत बिगड़ने लगी और कमजोरी भी हो गई वो चक्कर खाकर गिर गई तो डॉक्टर को दिखाया गया तो डॉक्टर ने सलाह दी
Sita अगर तुम आराम नहीं करोगी ठीक से खाओगी नहीं तो तुम्हारा बच्चा खतरे में पड़ सकता है। जितना हो सके अपना ख्याल रखो।
सीता डॉक्टर की बात से बहुत घबरा गई और मन ही मन सोच लिया कि अब वो कोई काम नहीं करेगी।
डॉक्टर की बात सुनकर भी सास पर कोई असर नहीं हुआ। डॉक्टर के जाते ही वो सीता को आवाज लगाई और कहा पूरे घर में झाड़ू नहीं लगा है चल उठ ज्यादा सोएगी तो बच्चा भी सुस्त होगा ।
सीता बोली नहीं में अब कोई काम नहीं करूंगी मीरा बच्चा सुस्त होगा वो चलेगा पर दिन रात काम करके उसकी जान नहीं ले सकती।
सास ने कहा जुबान लड़ा रही है रुक अभी तेरा इलाज करती हूं जैसे ही हाथ उठाया सीता ने हाथ पकड़ लिया और कहा अब बस और नहीं।
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बात मेरी थी तब तक ठीक था अब बात मेरे बच्चे की है अब में कोई भी अत्याचार नहीं सहुंगी मैने बहुत सहा मेरी सहन शक्ति ख़त्म हो उससे पहले रुक जाइए वरना में कुछ कर बैठूंगी कोई काम जो मेने आज तक नहीं किया।
सीता ने अपनी सास के विरूद्ध आवाज उठा कर सही किया या उसने आवाज उठाने में देर कर दी अगर सीता ने ये आवाज पहले उठाई होती आज उस ये सब सहना नहीं पड़ता।
सीता ने अपनी सास से कह दिया कि मैं अपनी माॅं के घर जाऊंगी और वहा तब तक रहूंगी।
जब तक मेरा बच्चा अच्छे से हो नहीं जाता। सीता ने अपने पिता और भाई को फोन कर बुलाया और उनके साथ अपने मायके चली गई।
मायके में सीता का बहुत ही अच्छी तरह से ख्याल रखा जाता था। और कोई काम नहीं करने दिया जाता था। सीता ने सारी बाते सोनू को भी बताई सोनू को भी सीता का फैसला सही लगा।
अब सीता को एक प्यारा सा बेटा हुआ सीता की सास ने भी अपने बुरे बर्ताव के लिए उससे माफी मांगी।
Sita दिल की बहुत अच्छी थी। उसने अपनी सास को माफ कर अपने बेटे को उसके गोद में दिया।
Sita अब अपने घर परिवार के साथ बहुत खुश थी।